कबीर के राम
भगवान श्री राम का नाम हम पूरी आस्था के साथ लेते है| हम भगवान श्री राम को पुरुषोत्तम राम के नाम से पुकारतें है| राम के नाम का उद्धरण वेद में भी मिलता है| तुलसीदास विरचित राम चरित मानस एवं अन्य सभी रामायणों में अयोद्ध्या के राजा दशरथ पुत्र श्री राम का नाम प्रथम स्मरणीय होता है| भगवान श्री राम को श्री विष्णू का अवतार माना जाता है| वैष्णव मत के अनुसार दसरथ पुत्र श्री राम का नाम अमर पद दाता है| यदि कोई भी श्रद्धा के साथ राम नाम का स्मरण करता है तो सामान्य रूप में हम राम नाम का सम्बन्ध दसरथ पुत्र श्री राम से लेते हैं| कबीर ने भी व्यापक रूप में राम का नाम लिया है| राम का नाम स्मरण के कारण बहुतेरे लोग कबीर को वैष्णव सम्प्रदाय का अनुयायी मानते हैं| राम का नाम लेने के कारन रामानंदी सम्प्रदाय के लोग कबीर को रामानंद का शिष्य कहते हैं| आत्मा को भी राम के नाम से संबोधित किया गया है| परमात्मा को पुरुष कहा गया है और राम नाम दिया गया |
राम शब्द इतना व्यापक है कि साहित्य में परमात्मा के लिए इसके समकक्ष केवल एक शब्द ही आता है, जिसे वासुदेव कहते हैं | रमते इति राम: "जो कण- कण में रमते हों उसे राम कहते हैं ।" कबीर साहेब भी कहते हैं कि :-
सबमें रमै रमावै जोई, ताकर नाम राम अस होई ।
घाट - घाट राम बसत हैं भाई, बिना ज्ञान नहीं देत दिखाई।
आतम ज्ञान जाहि घट होई, आतम राम को चीन्है सोई।
कस्तूरी कुण्डल बसै , मृग ढूंढ़े वन माहि।
ऐसे घट - घट राम हैं, दुनिया खोजत नाहिं ।
राम शब्द भक्त और भगवान में एकता का बोध कराता है। जीव को प्रत्येक वक्त आभाष होता है कि राम मेरे बाहर एवं भीतर साथ - साथ हैं, केवल उनको पहचाननें की आवश्यकता है। मन इसको सोच कर कितना प्रफुल्लित हो जाता है। इस नाम से सर्वात्मा का अनुभव होता है। स्वामी तथा सेवक, साहेब और भक्त में उतनी सामीप्यता नहीं अनुभव होता है। परमात्मा को और भी नामों से संबोधित किया जाता है, लेकिन वे एकांगी जैसा अनुभव होते हैं।
"र " का अर्थ है अग्नि, प्रकाश, तेज, प्रेम, गीत । रम (भ्वा आ रमते) राम (रम कर्त्री घन ण) सुहावना, आनन्दप्रद, हर्षदायक, प्रिय, सुन्दर, मनोहर ।कबीर साहेब राम के सम्बन्ध में भेद कहते है:-
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चार राम हैं जगत में,तीन राम व्यवहार ।
चौथ राम सो सार है, ताका करो विचार ॥
एक राम दसरथ घर डोलै, एक राम घट-घट में बोलै ।
एक राम का सकल पसारा, एक राम हैं सबसे न्यारा ॥
सकार राम दसरथ घर डोलें, निराकार घट-घट में बोलै ।
बिंदराम का सकल पसारा, अकः राम हैं सबसे न्यारा ॥
ओउम राम निरंजन रारा, निरालम्ब राम सो न्यारा ।
सगुन राम विष्णु जग आया, दसरथ के पुत्र कहाया ॥
निर्गुण राम निरंजन राया, जिन वह सकल श्रृष्टि उपजाया ।
निगुण सगुन दोउ से न्यारा, कहैं कबीर सो राम हमारा ॥
सगुण राम और निर्गुण रामा, इनके पार सोई मम नामा ।
सोई नाम सुख जीवन दाता, मै सबसों कहता यह बाता ॥
ताहि नाम को चिन्नहु भाई, जासो आवा गमन मिटाई ।
पिंड ब्रह्माण्ड में आतम राम, तासु परें परमातम नाम ॥
साखी :-
आतम चिन्ह परमातम चीन्है, संत कहावै सोई ।
यहै भेद काय से न्यारा, जानै बिरला कोई ॥
कबीर साहेब अपनें राम के लिए कहते हैं :-
जीव शीव सब प्रगटे, वै ठाकुर सब दास ।
कबीर और जाने नहीं, एक राम नाम की आश ॥
सुमिरन करहु राम की, काल गहे हैं केश ।
न जाने कब मारिहैं, क्या घर क्या परदेश ॥
एक राम नाम के संज्ञा के कारण उत्पन्न भ्रम भेद पर कबीर साहेब स्पष्ट कहते हैं । :-
झगड़ा एक बड़ो राजाराम । जो निरुवारै सो निर्वान ॥
ब्रम्ह बड़ा कि जहाँ से आया । वेद बड़ा कि जिन निरामया ॥
ई मन बड़ा कि जेहि मन मान । राम बड़ा कि रामहिजान ॥
भ्रमि- भ्रमि कबीरे फिरै उदास । तीर्थ बड़ा कि तीर्थ के दास ॥
साहेब वन्दगी !!!